Jagarnath Puri Itihaas: ओडिशा एक के पवित्र शहर में से एक है जहां के पुरी में शहर में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर है, यह मंदिर भारत के प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर में से एक है जो भगवान विष्णु के एक रूप में है और भगवान जगन्नाथ जी को समर्पित है। हिंदी धर्म का समृद्ध इतिहास, अद्वितीय अनुष्ठानों के साथ, स्थापत्य भव्यता के लिए जाना जाना जाता है।
Jagarnath Puri Itihaas | कब बनाया गया? वास्तुकला, भव्य रथ महोत्सव
यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है और हिन्दू भक्तों को अपनी और आकर्षित करता है। जगन्नाथ मंदिर भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ा आध्यात्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है और एक जीता-जगता प्रमाण भी है।
यहाँ जानें भगवान् जगन्नाथ मंदिर के बारे में
जगन्नाथ मंदिर, भगवान् विष्णु के एक रूप है और जगन्नाथ भगवान्को को समर्पित है यह मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर है जहां पर हिन्दू भक्तगण ही दर्शन कर सकते है। यह भारत के पूर्व की और ओडिशा के शहर पुरी में स्थित है। ब्रह्म पुराण, नारद पुराण और स्कंद पुराण में इस मंदिर के बारे में साफ़ शब्दो में उल्लेख किया गया है।
इन तीनों पुराणों में स्कंद पुराण का वर्णन अधिक विस्तृत रूप से किया गया है। इसके अनुसार ही, सतयुग में मालवा पर शासन करने वाले राजा जिनका नाम इंद्रद्युम्न था उन्होंने ही इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 1135 ईस्वी में कराया गया था। ,thik उसी के कुछ वर्षो के बाद इस मंदिर को सोमवंशी शासन से भी जोड़ा जाने लगा।
मंदिर के इतिहास ‘मदाला पणजी’ में ययाति केशरी को राजवंश के पहले राजा के रूप में उल्लेख करते हुए उन्हें भगवान्ज गन्नाथ मंदिर का निर्माणकर्ता बताया गया है। हालाँकि इसके समर्थन में कोई दूसरा ठोस सबूत नहीं मिला। हालाँकि अनेक अभिलेखों और शिलालेखों से इस स्थान की महत्ब का पता लगता है। वैष्णव परंपरा के अनुसार यह मंदिर 108 अभिमानों में से एक है जिन्हे विशेष स्थान दर्जा दिलाता है।
जगन्नाथ मंदिर को दूसरे नाम से भी बुलाया जाता है जो ‘यमनिका तीर्थ’ के नाम से भी प्रसिद्ध है, यहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो जाती है। इस मंदिर को ‘सफेद पैगोडा’ के नाम से भी जाना जाता है और यह चारधाम तीर्थयात्रा में से एक है जैसे की बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम है और ये तीर्थ स्थान के लिए भी जाना जाता है।
भगवान् जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया ?
सार्वजिनक रूप से यह स्वीकार किया जाता है कि पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी ईस्वी में राजा अनंत वर्मन चोदगंग देव द्वारा करवाया गया था। मंदिर का निर्माण “चोडगंगा” देव के शासनकाल के दौरान ही पूरा हो गया था, लेकिन काफी समय तक इस मंदिर को अंतिम रूप नहीं दिया गया था। अनंगभीम देव तृतीय ने 1230 ई. में मंदिर का निर्माण करवाया व और देवताओं की स्थापना पूर्ण रूप से की।
क्या है? जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास तो सदियों पुराना है, जिन्हे मिथक, किंवदंतियों और ऐतिहासिक वृत्तांतों से जुड़ा जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ, अपने भाई- बहन जिनका नाम भगवान् बलभद्र और देवी सुभद्रा था जो वैकुंठ के आध्यात्मिक क्षेत्र से पुरी में प्रस्थान हुए थे। यही कारण है कि हिंदू संस्कृति में इस मंदिर को महत्वपूर्ण स्थान के रूप का दर्जा दिया गया है।
शुरुआत में, इस मंदिर का निर्माण एक साधारण लकड़ी के रूप में किया गया था, लेकिन समय बीतने के बाद शासकों और भक्तों ने इसके विस्तार और संवर्धन के लिए खुद को समर्पित किया। सदियों से, इस मंदिर में विभिन्न नवीकरण और पुनर्निर्माण हुए, जिनमें से प्रत्येक ने इसके इतिहास में अनेक अध्याय जोड़ा। जगन्नाथ मंदिर का इतिहास एक उल्लेखनीय पहलू है और यह मंदिर कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं को झेलने के बावजूद भी आज भी मजबूती से खड़ा है।
जगन्नाथ मंदिर कब बनाया गया?
जगन्नाथ मंदिर का निर्माण वर्ष 1135 ई. में शुरू हुआ और राजा अनंतवर्मन चोदगंग देव के शासनकाल के दौरान लगभग 1150 ई. में आधे से ज्यादा काम समाप्त हुआ। हालाँकि मंदिर का निर्माण “चोडगंगा” देव के शासनकाल के दौरान लगभग पूरा हो चूका था, लेकिन काफी वर्षो तक इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया था। अनंगभीम देव तृतीय ने 1230 ई. में इसे अंतिम रूप देकर यहाँ देवताओं की स्थापना के सात संपन्न करवाया। जो उस समय के अनुसार सांस्कृतिक, कलात्मक और धार्मिक विकास पर प्रकाश डालने पर मजबूर करती है।
मंदिर की वास्तुकला क्या है?
श्री जगन्नाथ भगवान् वर्तमान के एक ऊंचे मंच पर आंतरिक रूप से आंगन के केंद्र में स्थित है। इसके चार घटक भाग हैं जिनमें से विमान या देउला (गर्भगृह), जगमोहन, नटमंडप और भोगमंडप शामिल हैं। मंदिर की स्थापत्य शैली दो प्रकार की मंदिर संरचनाओं का संयोजन है, अर्थात रेखा और पिढ़ा। जबकि विमान नागर प्रकार रेखा देउला की शैली में बनाया गया है, जगमोहन पिधा देउला के रूप में है। जगन्नाथ मंदिर भारतीय, विशेष रूप से कलिंगन वास्तुकला की सबसे पूर्ण और परिष्कृत अभिव्यक्तियों में से एक माना गया है।
जगन्नाथ मंदिर में लिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना दर्शाया गया है, जो द्रविड़, नागर शैलियों के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है। मुख्य मंदिर शुरू से लेकर अभी तक भव्य रूप से पूरी मजबूती के साथ खड़ा है और कई छोटे मंदिरों, मंडपों (स्तंभों वाले हॉल) व पवित्र जलस्त्रोतों से घिरा है। मंदिर के शिखर की कुल ऊंचाई, लगभग 58 मीटर यानी की (190 फीट) की ऊंचाई तक है जिसे हिंदू पौराणिक कथाओं के दृश्यों को चित्रित करने वाली जटिल नक्काशी से पूर्ण रूप से सजाया गया है।
जगरनाथ भगवान् मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार, जिसे सिंहद्वार कहा जाता है, जो राजसी पत्थर के शेर और सुंदर नक्काशीदार मूर्तियां के साथ बनाया गया हैं। पूरे मंदिर परिसर में जटिल कलाकृतियाँ से सजाया गया है और उस युग के कारीगरों के असाधारण कौशल और शिल्प कौशल को सही रूप को दर्शाती हैं और मंदिर में आंतरिक गर्भगृह है, जिसे मनुष्य के भाषा में (गर्भगृह) के नाम से जाना जाता है इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा का भी निवास हैं।
इस मंदिर में भगवान् के प्रतिमा को लकड़ी से बनाया गया है और उत्तम गहनों और पोशाकों के मदद से मूर्तियों को सजाया गया है। हर 12 या 19 साल में अनुष्ठान में बदल दिया जाता है जो नवकलेवर के नाम से प्रचलित है । यह समारोह लाखों तीर्थयात्रियों को अपनी और आकर्षित करता है जो इस महत्वपूर्ण अवसर में उत्सुकता से भाग लेते हैं उनकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होते है।
भव्य रथ महोत्सव का समारोह
पूरी शहर के भगवान् जगरनाथ के यहाँ का मुख्य आकर्षण वार्षिक रथ यात्रा उत्सव होता है, इस मंदिर में तीन मुख्य देवताओं, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की रथ यात्रा ये साथ भव्य जुलूस को भक्तों के साथ निकाली जाती है इस दौरान लाखों श्रधालुओ की मौजूदगी होती है इस जगह को रथ महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी सबसे प्रतिष्ठित और उत्सुकता से प्रतीक्षित घटनाओं में शामिल है।
वार्षिक उत्सव के दौरान रथ यात्रा को भगवान जगन्नाथ की मुख्य मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर (1.9 मील) दूर तक स्थित गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा की की जाती है। रथ यात्रा के दौरान देवताओं को भव्य रथों में बैठाकर में ले जाया जाता है, और लाखों भक्त भगवान जगन्नाथ का दिव्य दर्शन पाने के दौरान रथों को रस्सियों से खींचने के लिए महोत्सव में शामिल होते हैं ।
पूरी में भगवान् जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा मंदिर के मुख्य देवता हैं। आंतरिक गर्भगृह के भीतर, देवताओं को पवित्र नीम की लकड़ियों से उकेरा गया है, जिन्हें “दारू” के नाम से भी जाना जाता है। यह रत्नबेदी नामक एक रत्नजड़ित मंच पर विराजमान हैं। उनके साथ सुदर्शन चक्र, मदनमोहन, श्रीदेवी और विश्वाधात्री हैं। देवताओं को ऋतुओं के अनुरूप विभिन्न वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है और भी ज्यादा सुंदरता को दिखाता है। इन देवताओं की पूजा मंदिर के निर्माण से ठीक पहले की जाती है और उत्पत्ति एक प्राचीन आदिवासी मंदिर में हुई थी।
पूरी में जगन्नाथ मंदिर के मुख्य अनुष्ठान और त्योहार
जगन्नाथ मंदिर को रथ सहित अपने विस्तृत अनुष्ठानों और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध माना जाता है। यहाँ का रथ यात्रा पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह प्रसिद्ध त्योहार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर्षो उत्शाह के साथ मनाया जाता है। इसके लिए तीन विशाल रथों (कारों) का निर्माण किया जाता है। श्री बलभद्र, देवी सुभद्रा, श्री जगन्नाथ और श्री सुदर्शन के देवताओं को इन रथों में बैठाया और मंदिर के बाजारों के तरफ घुमाया जाता है और ‘गुंडिचा घर’ मंदिर में ले जाया जाता है, जो लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है, जहां देवता साल के सात दिनों की अवधि के लिए मौजूद रहते हैं। उसी पखवाड़े के 10 वें दिन. देवताओं को हिन्दू रीती रिवाजो के साथ वापस मंदिर में ले जाया जाता है।
रथ यात्रा, रथ महोत्सव, वैश्विक स्तर पर लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने पर मजबूर है, जिसमें पुरी की सड़कों के माध्यम से भव्य रथों पर देवताओं का एक औपचारिक रूप से आधुनिक जुलूस शामिल है।
यह एक अन्य महत्वपूर्ण त्योहार है स्नान यात्रा: यह त्योहार ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन (जून महीने के पहले भाग में) मनाया जाता है, जब मुख्य लकड़ी की छवियों को स्नान वेदी में मंडप में सजा कर लाया जाता है और चंदन की लकड़ी, कपूर और अन्य धूपबत्तियों के साथ मिश्रित 108 घड़े पानी के साथ डाला जाता है। फिर श्री बलभद्र और श्री जगन्नाथ की छवियों को एक हाथी के मुखौटे से सजाया जाता है, और जिसे ‘गजानन बेशा’ के नाम से भी जाना जाता है। रात को, देवता मंदिर में लौट जाते हैं और उन्हें ‘अनसरपिंडी’ में रखा जाता है।
ये विभिन्न त्योहार जगन्नाथ मंदिर में गतिशील और अद्वितीय पूजा को उजागर करते हैं।
जगन्नाथ मंदिर वर्षो से अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता के कारण प्रसिद्ध है।
अगर, आप भी भगवान् जगन्नाथ जी का दर्शन करने जाना चाहते है तो आप भारत के अनेक जगहों से ट्रेन व फ्लाइट से जा सकते है। पूरी में 2 बीच भी है जहां पर आप घूम भी सकते है और सुन टेम्पल, कोणार्क टेम्पल भी है। भगवान् का दर्शन करने में कोई परेशानी आ रही है तो आप पूरी में 200 से 300 रुपये में गाइड भी हायर कर सकते है वो आपको मंदिर में अच्छे से दर्शन करवा देंगे।
मंदिर के बाहर से ही आपको दूसरे जगह पर घूमने के लिए सवारी बस आसानी से मिल जायेगा जिसके बदले आपको करीब 1500 पर आदमी देना होगा व सुबह लेकर जायेंगे और शाम को फिर से आपको मंदिर के एरिया में छोड़ देंगे। आप अगर फॅमिली लेकर जाना चाहते है तो करीब 15000 में अच्छे से घूम लेंगे। वहां पर खाने और रहने की भी कोई दिक्कत नहीं है आसानी से सस्ते दर पर रहने के लिए रूम किराये पर ले सकते है। अधिक जानकरी के लिए श्री जगन्नाथ मंदिर के ट्रस्ट के ऑफिसियल पेज पर जा सकते है, ऑफिसियल पेज पर जानें के लिए यहाँ click करें।
जगन्नाथ मंदिर मुख्य FAQs
जगन्नाथ मंदिर का प्रशाद क्या है?
श्री जगन्नाथ मंदिर का मुख्य प्रशाद खाजा है।
जगन्नाथ मंदिर की मुशाय रूप से क्या खासियत है?
श्री जगन्नाथ मंदिर पुरे भारत में इसलिए खास है क्योंकि चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक, जिनका हर हिन्दू दर्शन करना चाहता है। इस जगह भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का मंदिर है। यह अपनी वार्षिक रथ यात्रा के लिए भी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।
भगवान् जगन्नाथ की कहानी?
हिंदू कथाओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार गया है और यहाँ की कहानी राजा इंद्रद्युम्न की कथा से बहुत हद तक जुड़ी हुई है।
पुरी जगन्नाथ मंदिर में तीन मूर्तियाँ कौन सी हैं?
पुरी जगन्नाथ मंदिर में पूजी जाने वाली तीन मुख्य मूर्तियाँ हैं जो भगवान जगन्नाथ, भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा है।
जगन्नाथ मंदिर ओडिशा का निर्माण किसने और कब कराया?
जगन्नाथ मंदिर ओडिशा का निर्माण 12वीं शताब्दी में पूर्वी गंगा राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंगा देव ने करवाया था।
जगन्नाथ मंदिर की छाया क्यों नहीं बनती?
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, मंदिर की छाया इसकी पवित्रता और दिव्य उपस्थिति के कारण ज़मीन पर नहीं पड़ती इसलिए छाया नहीं बनती।